साल 1947 की शुरुआत काफी कठिन थी क्योंकि
कुछ साल पहले जो लोग आजाद भारत चाहते थे
वही लोग बंटवारे के नारे लगा रहे थे धर्म
की बिना पर अखंड भारत की दो मुल्कों के
बंटवारे की मांग ने जगह-जगह हिंसक दंगे
भड़का दिए जो भारत मात्र दो सदियों पहले
दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था में 27 प्र
हिस्सेदारी रखता था जिसके धन को अंग्रेजों
ने भारत से लूटकर धन दौलत इंग्लैंड पहुंचा
दी थी इसलिए 19
47 में दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत
का हिस्सा सिर्फ 3.9 प्र रह गया था
दोस्तों आज फूटी कौड़ी शब्द का इस्तेमाल
मुहावरों में किया जाता है वही फूटी कौड़ी
उस वक्त देश की सबसे छोटी करेंसी बची थी
200 सालों तक भारत को लूटने वाले अंग्रेज
भारतीय सैनिकों की मदद से द्वितीय
विश्वयुद्ध तो जीत गए थे मगर भारत में
आजादी की आग को काबू करना अब उनके बस की
बात नहीं थी इसलिए देश के मसलों को
सुलझाने के बजाय ने देश को दो हिस्सों में
बांट दिया 14 अगस्त को मोहम्मद अली जिन्ना
को पाकिस्तान सौंपने के बाद लॉर्ड माउंट
ब्रिटन कराची से दिल्ली लौटे तो वह अपने
हवाई जहाज से मध्य पंजाब की आसमान की तरफ
जाते हुए काले धुएं साफ देख सकते थे इस
धुएं ने महात्मा गांधी सरदार वल्लभ भाई
पटेल और विशेष रूप से नेहरू के राजनीतिक
जीवन के सबसे बड़े क्षण की चमक को काफी हद
तक धुंधला कर दिया था उस शाम को जैसे ही
सूरज डूबा दो सन्यास कार में जवाहरलाल
नेहरू के 17 यक रोड स्थित एक घर के सामने
रुके उनके हाथ में सफेद सिल्क का पितांबर
तंजौर नदी का पवित्र पानी बूत और मद्रास
के नटराज मंदिर में सुबह चढ़ाए गए उबले
हुए चावल थे उनके आने की खबर मिलते ही
नेहरू घर के बाहर आए सन्यासियों ने नेहरू
को पीतांबर पहनाया उन पर पवित्र पानी का
छिड़काव किया और उनके माथे पर पवित्र भभूत
लगाई हालांकि पंडित नेहरू जीवन भर इन
रस्मों का विरोध करते आए थे लेकिन
उन्होंने मुस्कुराते हुए सन्यासियों का
अनुरोध स्वीकार किया हालांकि इस
मुस्कुराहट के पीछे दर्द छिपा हुआ था
बटवारे के कारण तड़प रहे लाखों
भारतवासियों को सब कुछ छोड़कर पलायन करते
देखने का दर्द खाने के लिए तरस रहे बच्चों
को देखने का दर्द और दंगों में जान गवा
चुकी जनता के परिवार का दर्द उसी शाम
आजादी की स्पीच लिखने से पहले जब नेहरू
पद्मजा नायडू फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी
के साथ खाने के मेंस पर बैठे तभी उनके फोन
की घंटी बजी यह फोन लाहौर से आया था और
खबर मिली कि वहां के नए प्रशासन ने हिंदू
और सिख इलाकों की पानी की आपूर्ति काट दी
थी लोग प्यास से तड़प रहे थे जो औरतें और
बच्चे पानी की तलाश में बाहर निकल रहे थे
उन्हें चुनचुन कर मारा जा रहा था लोग
तलवारें लिए रेलवे स्टेशन पर घूम रहे थे
ताकि वहां से भागने वाले सिखों और हिंदुओं
को मारा जा सके नेहरू ने फोन रखा और आंखों
में आंसुओं के साथ बेटी इंद्रा से बोले
मैं आज कैसे देश को संबोधित कर पाऊंगा
मैं कैसे जता पाऊंगा कि मैं देश की आजादी
पर खुश हूं जब मुझे पता है कि मेरा लाहौर
मेरा खूबसूरत लाहौर जल रहा है तब इंदिरा
ने उन्हें जल्द सब कुछ ठीक होने का दिलासा
दिया और नेहरू ने अपनी स्पीच ट्रस्ट विथ
डेस्टिनी यानी नियती के साथ मुलाकात लिखी
और देर रात संसद में अपना भाषण दिया वो
बोले आधी रात को जब दुनिया सो रही होगी
भारत जीवन और स्वतंत्रता के साथ जागेगा
अगली सुबह करोड़ों देशवासियों ने आजाद
भारत की खुली हवा में सांस ली बंटवारे का
दर्द तो अब भी था लेकिन उसका सामना करते
हुए आगे बढ़ना जरूरी था मगर यह उतना भी
आसान नहीं था क्योंकि लगभग 200 सालों तक
सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत के
सुनहरे पंख एक-एक कर कतर कर अंग्रेज तो
चले गए लेकिन पीछे छोड़ गए गरीबी
बेरोजगारी महंगाई भुखमरी निरक्षरता और
बिना किसी टिकाऊ काम धंधे वाली 33 करोड़
लोगों की जनता तो उस दौर में महंगाई कितनी
थी इतनी चुनौतियों के बावजूद भारत अपने
पैरों पर खड़ा कैसे हो पाया और 1947 में
भारत कैसा था जानने से पहले हर भारतीय
वीडियो को लाइक के साथ कमेंट बॉक्स में जय
हिंद जरूर लिखें क्योंकि जय हिंद का नारा
लगाना हमारे लिए गर्व की बात है आजादी के
बाद देश की 70 प्र जनता गरीबी और भुखमरी
से जूझ रही थी स्कूल में शिक्षा लेने के
बजाय बच्चे सड़क पर खाना ढूंढना सीख रहे
थे जिस वजह से देश में 88 प्र लोग अनपढ थे
दो सदियों पहले भारत दुनिया की कुल
अर्थव्यवस्था का 27 प्र हिस्सेदारी रखता
था लेकिन अंग्रेजों ने भारत से लूटकर धन
दौलत इंग्लैंड पहुंचा दी थी इसलिए 1947
में दुनिया की अर्थव्यवस्था में भारत का
हिस्सा सिर्फ 3.9 प्र रह गया था इसमें भी
देश की 60 प्र आमदनी खेती पर निर्भर थी
कहा जाता है कि अंग्रेजों के राज के दौरान
भी भारतीयों की इतनी बुरी व्यवस्था नहीं
थी जितनी आजादी की और बंटवारे के दौरान
करीब 6 महीनों तक हुई थी क्योंकि बिना
किसी सरकार बिना किसी करेंसी और बिजनेस के
अंग्रेज भारत को अपने हाल पर तड़पने के
लिए छोड़कर भाग निकले थे लेकिन भारत
परिवर्तन और विकास के लिए बिल्कुल तैयार
था देशवासियों ने हर चुनौती का सामना करके
आगे बढ़ना शुरू किया और साल 1951 में जब
दूर दराज के गांव तक पहुंचने के लिए ना तो
सड़कें थी और ना ही देश में पढ़े-लिखे लोग
थे जात-पात और जेंडर के आधार पर भेदभाव
करने वाली रूढ़िवादी परंपराएं थी तब सरकार
ने हर भारतीयों को समान हक देकर जब आजाद
भारत का पहला इलेक्शन करवाया तब से देश
में बदलाव की शुरुआत हुई लेकिन इतना आगे
पहुंचने से पहले जानते हैं कि 1947 में
भारत की करेंसी क्या थी तो जिस फूटी कौड़ी
शब्द का इस्तेमाल आज मुहावरों में किया
जाता है वही फूटी कौड़ी उस वक्त देश की
सबसे छोटी करेंसी थी उस वक्त तीन फूटी
कौड़ियों से एक कौड़ी बनती थी 10 कौड़ियों
से एक दमड़ी
दो दमणिया से डेढ़ पाई यानी एक ढेला और दो
ढेले से एक पैसे के बराबर तीन पैसों को एक
टका कहा जाता था दो टके मिलकर एक आना बनता
था फिर आने के भी अपने अलग-अलग नाम और
सिक्के थे जैसे कि दो आने यानी दो अन्नी
चार आने यानी नी आठ आने यानी अठनी और 16
आने से ₹1 बनता था उस वक्त अमेरिकी करेंसी
डॉलर की कीमत सिर्फ
3.3 थी यानी आज के मुकाबले उस वक्त रुपया
ज्यादा स्ट्रांग था लेकिन उस दौर में
लोगों की कमाई भी काफी कम होती थी लोग
महीना भर मेहनत करके 15 से ₹ कमाते थे और
जो लोग महीने की 150 या 50 तक कमाई कर
लेते थे उन्हें अमीर माना जाता था लेकिन
1947 में आखिर महंगाई कितनी थी जो इतनी कम
आमदनी में भी लोग अपना गुजारा कर लेते थे
सबसे पहले खाने पीने की बात करें तो 1947
में चावल 12 पैसे प्रति किलो चीनी 40 पैसे
घी 75 पैसे आटा 10 पैसे दाल 20 पैसे दूध
12 पैसे से और गुण 12 पैसे प्रति किलो की
कीमत में मिल जाता था उस दौर में सिर्फ एक
पैसे में एक केला मिलता था 25 पैसे में
साबुन और बल्ब मिल जाता था जबकि सिनेमा के
टिकट सिर्फ 30 पैसे में मिलती थी जो आगे
बढ़कर औसतन 00 तक पहुंच चुकी है यानी करीब
हज गुना ज्यादा सन 1947 में देश के कुछ
प्रतिशत हिस्से में ही बिजली थी किसी के
घर बिजली होना तो मानो एक लग्जरी थी देश
के 90 से 95 प्र हिस्से में बिल्कुल कच्ची
सड़कें थी यातायात के लिए लोगों के पास
महंगी गाड़ियां या बाइक नहीं बल्कि सिर्फ
साइकिल हुआ करती थी जिसकी कीमत महज ₹ थी
लेकिन उस समय के हिसाब से काफी ज्यादा थी
सोना चांदी की बात करें तो 1947 में 10
ग्राम सोने की कीमत मात्र 88 थी जो आज 888
से 8000 पहुंचने के करीब है और 1 किलो
चांदी की कीमत सिर्फ ₹10 7 थी बाकी जीवन
जरूरी चीजों की कीमत पर नजर डालें तो
टॉर्च ₹1 क्रोसिन वाला चूल्हा ₹ सिलाई
मशीन 85 गाड़ी ₹2500000
स्कूल मौजूद थे उच्च शिक्षा के लिए 100
कॉलेजेस महज 25 30 यूनिवर्सिटीज थी
यातायात के किराए की बात करें तो उस वक्त
बस ट्रेन और बैलगाड़ी का किराया पैसों से
लेकर आनो तक होता था कोलकता में ट्रैम
गाड़ी का किराया महज 5 पैसे होता था और
दिल्ली से मुंबई फर्स्ट क्लास ट्रेन की
टिकट ₹1 में मिलती थी स्कूल फीस ₹ प्रति
महीना होती थी और अस्पताल में प्रेग्नेंट
लेडी की डिलीवरी सिर्फ
₹5000000 घर पर ही होता था अब 1951 में
हुए आजाद भारत के पहले इलेक्शन की बात
करें तो जनता ने अपने प्रधानमंत्री के रूप
में पंडित जवाहरलाल नेहरू को ही चुना
जिन्होंने आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री
के रूप में चुने जाने के बाद जवाहरलाल
नेहरू ने हिंदू सिविल कोड का बिल पास किया
जिसके तहत देश की सभी विधवा औरतों को उनकी
पति की संपत्ति पर समान अधिकार मिला उनका
अगला उद्देश्य था देश में औद्योगीकरण की
शुरुआत करना ताकि जनता को रोजगार मिल सके
इसके लिए पंडित नेहरू ने पांच यर प्लान को
भी लॉन्च किया जिसका उस वक्त टोटल बजट था
2378 करोड़ जिसका इस्तेमाल खेतीबाड़ी
टेलीकम्युनिकेशन यातायात और इंडस्ट्रीज को
आगे बढ़ाने के लिए किया गया था इस योजना
में 2.1 प्र का टारगेट ग्रोथ रेट हासिल
करने का सरकार का प्लान था लेकिन गर्व की
बात है कि देश ने 3.6 प्र टारगेट ग्रोथ
रेट हासिल किया जिससे देश में बेरोजगारी
धीरे-धीरे कम होने लगी और अर्थव्यवस्था
स्टेबल होने लगी और पिछले 78 सालों में
भारत लगातार विकास करता जा रहा है और आपको
यह जानकर गर्व महसूस होगा कि जिस ब्रिटेन
ने भारत को 200 सालों तक लूटा था साल 2009
में भारत ने उसकी अर्थव्यवस्था को पीछे
छोड़ दिया और आज भारत की इकोनॉमी दुनिया
की पांचवी सबसे बड़ी इकोनॉमी है तो आज के
लिए बस इतना ही अगर आपको भी देश को आजादी
दिलवाने वाले महान क्रांतिकारियों पर गर्व है